Mastitis Disease in Cattle: Causes, Symptoms, and Treatment
Mastitis, जिसे हिंदी में “थनेल्ला रोग” के रूप में जाना जाता है, का अर्थ होता है अयन (थनों) में सूजन या संक्रमण। यह रोग चार अवस्थाओं में पाया जाता है: Percute, Acute, Subacute, और Chronic। थनेल्ला रोग मुख्य रूप से बैक्टीरिया के कारण होता है, लेकिन यह वायरस, परजीवी, फफूंद और अन्य संक्रमणकारी कारकों से भी हो सकता है।
Mastitis रोग सामान्यतः उच्च दुग्ध उत्पादन के दौरान होता है, क्योंकि इस समय गाय के थन में दूध का दबाव अधिक होता है, और दूध नलिका के माध्यम से बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यह रोग सामान्यतः गाय, भैंस और बकरियों को प्रभावित करता है और डेयरी उद्योग में सबसे अधिक आर्थिक नुकसान पहुंचाने वाले रोगों में से एक है। यह थनों में दर्दनाक सूजन और दूध के दही जैसा फटा हुआ, बदबूदार और रंग में परिवर्तन के रूप में प्रकट होता है।
Mastitis Disease in Cattle
Alternate Names |
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Causing Agents |
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Commonly Affected |
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Types |
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Main Symptoms |
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Transmission | Contact with infected milk, environmental contamination |
Diagnosis Methods |
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Treatment |
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Prevention |
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Key Peculiarity | Chronic mastitis can lead to permanent milk production loss in affected udders |
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Prevalence and Economic Impact of Mastitis Disease in Cattle
मास्टिटिस न केवल गोवंशों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि यह डेयरी उद्योग की एक गंभीर बीमारी है जो दूध उत्पादन, किसानों की आय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। जिस गाय या भैंस में किसी अयन में क्रोनिक मास्टिटिस होता है, उसमें जीवन भर उस अयन से दूध आना बंद हो जाता है।
सबक्लिनिकल मास्टिटिस (SCM) और क्रोनिक मास्टिटिस भारतीय डेयरी उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती हैं, जिससे अनुमानित वार्षिक नुकसान लगभग ₹2.37 हजार करोड़ होता है। सबक्लिनिकल मास्टिटिस भारत में अधिक प्रचलित है और यह उद्योग को होने वाले कुल वार्षिक नुकसान का लगभग 70% हिस्सा होता है। उच्च दुग्ध उत्पादन वाली संकर नस्लों में आर्थिक नुकसान अधिक होता है (INR 1,314.10 प्रति स्तनपान) जबकि देशी गायों (INR 868.34) और भैंसों (INR 1,272.36) में यह तुलनात्मक रूप से कम है।
Understanding the Types of Mastitis Disease in Cattle
गाय-भैंसों में Mastitis रोग मुख्य रूप से जीवाणु, वायरस, फंगस, और परजीवी के संक्रमण से होता है। लेकिन गाय, भैंस, भेड़, और बकरी में लगभग 90% थनेला रोग के मामले जीवाणु जनित होते हैं। चूंकि थनेला रोग इन सभी प्रकार के कारकों (जीवाणु, वायरस, फंगस और परजीवी) के कारण हो सकता है, इसका सम्पूर्ण इलाज करना बेहद कठिन होता है।
- Bacterial Mastitis:
जीवाणु के संक्रमण से होने वाला थनेला रोग, जिसे “बैक्टीरियल मैस्टाइटिस (Bacterial Mastitis)” कहा जाता है। - Fungal Mastitis:
फंगस के संक्रमण से होने वाला थनेला रोग, जिसे “फंगल मैस्टाइटिस (Fungal Mastitis)” कहा जाता है। - Viral Mastitis:
विषाणु (वायरस) के संक्रमण से होने वाला थनेला रोग, जिसे “वायरल मैस्टाइटिस (Viral Mastitis)” कहा जाता है। - Parasitic Mastitis:
परजीवी के संक्रमण से होने वाला थनेला रोग, जिसे “पैरासिटिक मैस्टाइटिस (Parasitic Mastitis)” कहा जाता है।
Etiology of Mastitis Disease in Cattle (थनैला रोग का कारण )
मास्टिटिस (थनेला रोग) के कारण मुख्य रूप से चार प्रकार के कारक होते हैं: जीवाणु, फंगस, वायरस, और परजीवी। यहां इसके विभिन्न कारणों को विस्तृत रूप से समझाया गया है:
A. Bacterial Causes
थनेला रोग मुख्यतः जीवाणुओं के संक्रमण से होता है और यह दुधारू पशुओं जैसे गाय, भैंस और बकरियों में सामान्य रूप से पाया जाता है।
- Environmental Mastitis:
यह प्रकार मुख्य रूप से Klebsiella, Escherichia coli (E. coli), और Streptococcus uberis बैक्टीरिया के कारण होता है। - Cold Mastitis:
सर्दियों के मौसम में यह बीमारी मुख्य रूप से Leptospira Pomona बैक्टीरिया के कारण होती है। - Summer Mastitis:
गर्मियों के मौसम में थनेला रोग Corynebacterium pyogenes और Mycobacterium bovis बैक्टीरिया के कारण होता है। - Contagious Mastitis:
संक्रामक थनेला रोग मुख्य रूप से Staphylococcus aureus और Streptococcus agalactiae बैक्टीरिया के कारण होता है।
नोट:
- गायों में मास्टिटिस का सबसे महत्वपूर्ण कारण Staphylococcus aureus बैक्टीरिया है।
- गायों में थनेला रोग का दूसरा सबसे बड़ा कारण Streptococcus agalactiae बैक्टीरिया है।
- अन्य बैक्टीरिया जो थनेला रोग के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं:
Pasteurella multocida, Streptococcus zooepidemicus, Streptococcus pyogenes, Brucella abortus, Klebsiella spp., Escherichia coli (E. coli), और Leptospira Pomona।
B. Fungal Causes
फंगल मास्टिटिस Aspergillus fumigatus, A. midulus, Candida spp., और Trichosporon spp. जैसे फंगस के कारण होता है।
Common Symptoms of Mastitis Disease in Cattle (थनैला रोग के लक्षण)
मास्टिटिस रोग को लक्षणों के आधार पर तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है, जिनमें प्रत्येक के अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं:
A. Acute Mastitis
- थनों (गादी) में गंभीर सूजन और पीड़ादायक दर्द।
- थनों को छूने पर अत्यधिक पीड़ा।
- पशु को हल्का बुखार।
- दूध आना बंद हो जाता है, लेकिन गाढ़ा स्राव (पीला और हल्का लाल) निकलने लगता है।
- दूध दही की तरह कटा हुआ दिखता है और उसमें पीले-भूरे रंग के साथ मृत कोशिकाओं की उपस्थिति होती है।
B. Sub-Acute Mastitis
- थनों में हल्की सूजन होती है, लेकिन दर्द सहनीय होता है।
- दूध पीले, भूरे, या हल्के लाल रंग का होता है और कटी हुई दही की तरह दिखता है।
C. Chronic Mastitis
- थन (Teat) के क्वार्टर में फाइब्रोसिस के कारण दबाने पर दर्द होता है।
- दूध सफेद-पीला दिखाई देता है, जिसमें थक्के हो सकते हैं और बदबू आती है।
- इस अवस्था में पशुओं में तपेदिक (टीबी) होने की संभावना बढ़ जाती है।
दूध देने वाली गायों में थनेला रोग के कारण: What Causes Mastitis in Dairy Cows?
भैंस, भेड़ और बकरी की तुलना में सबसे अधिक थनेला रोग गायों में होता है, और विशेष रूप से विदेशी गायों में यह अधिक देखने को मिलता है। इसका कारण यह है कि गाय के थन की दूध नलिका भैंस की दूध नलिका से अधिक चौड़ी होती है। देशी गायों में थनेला रोग मुख्यत: तीसरी लैक्टेशन में होता है, जबकि विदेशी गायों में यह पांचवीं लैक्टेशन में होता है, क्योंकि इन लैक्टेशनों में गाय सबसे अधिक दूध उत्पादन करती है। विदेशी गायों में थनेला रोग सबसे अधिक होल्सटियन-फ्रिजियन गायों में होता है।
भैंस में थनेला रोग मुख्यत: चौथी लैक्टेशन में होता है।
- देशी गाय: 3 लैक्टेशन
- भैंस: 4 लैक्टेशन
- विदेशी गाय: 5 लैक्टेशन
How to Diagnose Mastitis Disease in Cattle (थनैला रोग का निदान)
मास्टिटिस रोग का निदान पशु के लक्षणों और विभिन्न परीक्षणों के माध्यम से किया जाता है। यहां मास्टिटिस के निदान के लिए उपयोग किए जाने वाले मुख्य तरीकों की जानकारी दी गई है:
1. By Symptoms (लक्षणों के आधार पर):
पशु के थनों (गादी) में सूजन, दर्द, दूध का रंग और बनावट में बदलाव, या अन्य लक्षण देखकर प्राथमिक स्तर पर मास्टिटिस का पता लगाया जा सकता है।
2. California Mastitis Test (CMT):
- यह परीक्षण मास्टिटिस की जाँच का सबसे सरल तरीका है।
- दूध में सेल काउंट (Somatic Cell Count) का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- प्रक्रिया: दूध के नमूने में CMT समाधान मिलाकर जिलेटिन जैसा थक्का बनने की उपस्थिति देखी जाती है।
- यह परीक्षण सब-क्लिनिकल मास्टिटिस का भी पता लगाने में उपयोगी है।
3. Chloride Test:
- दूध में क्लोराइड की मात्रा की जाँच करके मास्टिटिस का पता लगाया जाता है।
- मास्टिटिस होने पर दूध में क्लोराइड का स्तर बढ़ जाता है। जिस कारण दूग्ध में खारापन और गर्म करने पर दूध फट जाता है।
4. Catalase Test:
- इस परीक्षण के जरिए दूध में उत्प्रेरक एंजाइम (Catalase) की उपस्थिति का पता लगाया जाता है।
- मास्टिटिस की स्थिति में यह एंजाइम दूध में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
5. Bromo Cresol Purple Test:
- इस परीक्षण में दूध के पीएच स्तर को मापा जाता है।
- मास्टिटिस के दौरान दूध का पीएच बदल जाता है, जिससे इसका रंग बैंगनी हो जाता है।
- थनेला रोग में दुग्ध की पीएच क्षारीय होती है।
6. Bromothymol Blue Test:
- दूध के अम्लीय या क्षारीय गुणों की जांच के लिए यह परीक्षण किया जाता है।
- दूध का रंग नीला या पीला हो जाने पर मास्टिटिस की पुष्टि होती है।
7. Strip Cup Test:
- यह सरल परीक्षण है जिसमें दूध की गुणवत्ता को हाथ से स्ट्रिप कप (Filter Cup) में निकालकर जांचा जाता है।
- मास्टिटिस की स्थिति में दूध में थक्के या रंग में बदलाव दिखाई देता है।
Effective Treatment for Mastitis in Cattle (थनेला रोग का उपचार )
A. Antibiotic Therapy for Mastitis in Cattle
- थनैला रोग के फैलाव को रोकने के लिए संक्रमित जानवरों को अलग रखें।
- सभी थनों को धोकर साफ करें और स्वच्छ करें, ताकि थन की अंदरूनी सफाई हो सके और अंदर जमे मृत कोशिकाएँ व दूधयुक्त पीला स्राव बाहर निकल सके।
- जीवाणु जनित थनेला रोग के इलाज के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक्स का चयन करने के लिए एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परीक्षण (Antibiotic Sensitivity Test) करें।
- एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परीक्षण कराने के बाद, थनों में उसी एंटीबायोटिक की ट्यूब डालें।
- मुख्यत: थनेला रोग में पेनिसिलिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन और सेफ्ट्रियाक्सोन आदि एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है।
- पशु के थनों में एंटीबायोटिक टेट्स ट्यूब या इंट्रामामरी इन्फ्यूजन डालें, ताकि संक्रमण (Infection) को जल्दी समाप्त किया जा सके। (दिन में एक बार / दिन में दो बार)
B. Types of Intramammary Infusions for Mastitis Disease Treatment
गायों में थनेला रोग के इलाज और रोकथाम के लिए इंट्रामामरी इंफ्यूजन का सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है। ये इंफ्यूजन एंटीबायोटिक्स, एंटी-इन्फ्लेमेटरी एजेंट्स, या अन्य दवाओं को सीधे गाय के थन में पहुंचाते हैं, ताकि बैक्टीरियल संक्रमण का सामना किया जा सके और सूजन को कम किया जा सके।
- Antibiotic Intramammary Infusions:
इन इंफ्यूजन में पेनिसिलिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन और सल्फा ड्रग्स जैसे एंटीबायोटिक्स होते हैं।
एंटीबायोटिक इंफ्यूजन गाय के थन में बैक्टीरियल थनेला का इलाज करने में प्रभावी होते हैं, बैक्टीरिया को मारकर या उनकी वृद्धि को रोकते हैं। हालांकि, यदि थनेला रोग वायरस के कारण होता है तो किसी भी प्रकार की एंटीबायोटिक्स प्रभावी नहीं होंगी। - Anti-inflammatory Intramammary Infusions:
इन इंफ्यूजन में कोर्टिकोस्टेरॉयड्स (Corticosteroids) या फ्लूनिक्सिन मेग्लुमाइन (Flunixin Meglumine) जैसे एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं होती हैं, जो सूजन को कम करने में मदद करती हैं।
एंटी-इन्फ्लेमेटरी इंफ्यूजन सूजन को कम करते हैं और थनेला रोग से जुड़ी दर्दनिवारक राहत प्रदान करते हैं। - Combination Intramammary Infusions:
कुछ इंट्रामामरी इंफ्यूजन एंटीबायोटिक्स को एंटी-इन्फ्लेमेटरी एजेंट्स (Anti-Inflammatory Drugs) के साथ मिलाकर दिए जाते हैं, ताकि दोनों एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी प्रभाव प्राप्त किए जा सकें।
Example: Pendistrin SH
Composition:
- Penicillin – Antibiotic Action
- Streptomycin – Antibiotic Action
- Sulfa Drugs – Antibiotic Action
- Corticosteroid – Anti-inflammatory Action
- Teat Sealant Intramammary Infusions:
टीट सीलेंट्स को इंट्रामामरी इंफ्यूजन के रूप में उपयोग किया जाता है ताकि थन में नए संक्रमण की रोकथाम की जा सके। Teat Sealant Intramammary Infusions का उपयोग मुख्यत: पशु के शुष्ककाल (जब पशु के प्रसव से 2 महीने पहले दूध निकलना बंद हो जाता है, और इस समय को शुष्ककाल कहा जाता है) के दौरान किया जाता है।
Preventive Measures for Mastitis Disease in Cattle (बचाव)
- डेयरी फार्म पर स्वच्छता का ध्यान रखें और सभी क्षेत्रों को नियमित रूप से डीसइंफेक्ट करें।
- स्वस्थ जानवरों को थनेला रोग से संक्रमित जानवरों से अलग रखें।
- थनेला संक्रमण को रोकने के लिए गायों और भैंसों में “पूर्ण दूध दोहन” विधि का पालन करें और यह सुनिश्चित करें कि थनों में दूध न छोड़ा जाए, क्योंकि थनेला रोग के कारण Residual Milk होने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
- दूध दोहन के बाद गायों को 2 मिनट तक बैठने न दें और थनों को गुनगुने पानी या किसी एंटीसेप्टिक घोल से अच्छे से साफ करें।
- गायों और भैंसों के बाड़े में बालू रेत बिछाएं, क्योंकि रेत पर संक्रमण का फैलाव अन्य फर्श की तुलना में बहुत कम होता है।
- थनेला के लक्षणों की शुरुआत होते ही तत्काल उपचार शुरू करें।