"Garima: The Second Cloned Buffalo Calf of the World and Its Impact on India's Dairy Industry"
गरिमा : दुनिया की दूसरी क्लोन भैंस का बछड़ा
भारत, जो दुनिया की भैंसों की 56% से अधिक आबादी का घर है, पशुधन उत्पादन में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है, विशेष रूप से चारे और उच्च गुणवत्ता वाले जानवरों की कमी के कारण। विशाल पशुधन जनसंख्या होने के बावजूद, देश में उच्च दुग्ध उत्पादन दर हासिल करने में कठिनाई हो रही है। इस ब्लॉग में हम करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) द्वारा भैंस क्लोनिंग में सफलता , गरिमा के जन्म और इस तकनीक के भारत की डेयरी उद्योग पर संभावित प्रभाव की चर्चा करेंगे।
भारत में वर्तमान में भैंसों की आबादी
कुल भैंसों की संख्या:
- 2019 में भारत में कुल भैंसों की संख्या 109.85 मिलियन है, जो पिछली गणना की तुलना में लगभग 1.0% अधिक है।
"Discover Garima, the second cloned buffalo calf, and the groundbreaking Handguided Cloning Technique by NDRI. Learn about its potential impact on India's dairy industry."
हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक
Discovery of Handguided Cloning Technique
- हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक की खोज नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) के वैज्ञानिकों द्वारा की गई और यह तकनीक "पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक" का संशोधन रूप और सरल संस्करण है।
Cost-Effective
- पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक की तुलना में, हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक सस्ती व् सरल है।
Technical Process of Handguided Cloning Technique
1. Oocyte Maturation
- सबसे पहले Slaughter Houses अंडाशय को एकत्रित किया जाता है इन अंडाशयों से Oocytes (egg cells) को अलग किया जाता है और विट्रो में परिपक्व (Laboratory Environment) किया जाता है।
2. Enucleation
- ओसाइट्स (Oocytes) को डिन्यूड (उनकी बाहरी परतों को हटाया जाता है), ज़ोना पेलूसिडा (the Protective Outer Layer of the Oocyte) को पचाने के लिए एक एंजाइम के साथ उपचारित किया जाता है, और फिर एक हाथ से पकड़े गए फाइन ब्लेड का उपयोग करके उनका केन्द्रक (Nucleous) हटा दिया जाता है।
3. Somatic Cell Integration
- इस तकनीक में, एक दाता भैंस के कान से ली गई कायिक कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है। इन सोमैटिक कोशिकाओं के केन्द्रक (जिसमे गुणसूत्र पाया जाता है ) , जिसमें आनुवंशिक सामग्री होती है, को निकाला जाता है।
- इलेक्ट्रोफ्यूजन (Electrofusion) द्वारा इस केन्द्रक को फिर विद्युत पल्स का उपयोग करके एंयुक्लिएटेड (Nucleous Less Oocytes) ओसाइट्स के साथ मिलाया जाता है। ताकि ओसाइट्स को सक्रीय किया जा सके।
4. Embryo Development
- इन संयुक्त कोशिकाओं को प्रयोगशाला में परिपक्व किया जाता है और परिणामी भ्रूणों को ग्राही भैंसों (Recipient Buffaloes) में स्थानांतरित किया जाता है, जो उन भ्रूणों को पूरे गर्भकाल तक ले जाती हैं।
- इस तकनीक से वांछित लिंग के बछड़ों का उत्पादन संभव है, जिसे प्रक्रिया के दौरान निर्धारित किया जा सकता है
The Birth of Garima
First Cloned Buffalo Calf: पहला क्लोन भैंस का बछड़ा 6 फरवरी 2009 को जन्मा, लेकिन एक हफ्ते के भीतर मर गया।
Garima's Birth: 6 जून 2009 को, दूसरी क्लोन बछड़ी गरिमा का जन्म हुआ, जिसका वजन 43 किलोग्राम था।
Nurturing and Growth of Garima
Diet:
- शुरुआत में कोलोस्ट्रम, फिर भैंस के दूध, मिल्क रिप्लेसर/कंसंट्रेट सप्लीमेंट और उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे से पोषित किया गया।
Growth Rate:
- गरिमा की वृद्धि दर 800 ग्राम प्रति दिन से अधिक रही, जो समान उम्र के सामान्य बछड़ों के लिए 500 ग्राम की तुलना में काफी अधिक है।
Current Status:
- 6.5 महीने की उम्र में गरिमा का वजन 202 किलोग्राम था, और उसके व्यवहार और शारीरिक मापदंड सामान्य थे।
Key Points
- विश्व का पहला क्लोन जानवर डोली भेड़ है, जो 1996 में स्कॉटलैंड में पैदा हुआ था।
- हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक की खोज नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) , करनाल (हरियाणा) ने की है।
- 6 फरवरी 2009 को NDRI, करनाल (हरियाणा) द्वारा विकसित हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक से विश्व की पहली क्लोन बछड़ी का जन्म हुआ जो एक हफ्ते में मर गयी।
- 6 जून 2009 को NDRI, करनाल (हरियाणा) द्वारा विकसित हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक से विश्व की दूसरी क्लोन बछड़ी गरिमा का जन्म हुआ, जो इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
डेयरी उद्योग के लिए प्रभाव (Implications for the Dairy Industry)
1. Enhanced Milk Production:
- हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक उच्च गुणवत्ता वाले जर्मप्लाज्म की तेज़ी से वृद्धि का वादा करती है, जिससे दुग्ध उत्पादन दरों में वृद्धि संभव है।
2. Addressing Bull Scarcity:
- यह तकनीक उत्कृष्ट सांडों की उपलब्धता में सुधार कर सकती है, सुनिश्चित करते हुए कि उच्च गुणवत्ता वाले सांडों की जल्दी आपूर्ति हो।
3. Sustainable Dairy Farming:
- क्लोनिंग में प्रगति बढ़ती जनसंख्या के बीच दूध की मांग को पूरा करने में मदद कर सकती है, खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित कर सकती है।
This blog aims to provide a comprehensive overview of the Handguided Cloning Technique and its potential impact on India's dairy farming, showcasing the revolutionary progress made with the birth of Garima.
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भैंस के बछड़े का क्लोन किस देश ने लगाया?
भारत ने भैंस के बछड़े का क्लोन लगाया। नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI), करनाल, हरियाणा के वैज्ञानिकों ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को हासिल किया।
भारत का पहला क्लोन कौन सा है?
भारत का पहला क्लोन भैंस का बछड़ा है, जिसका जन्म 6 फरवरी 2009 को हुआ था। हालांकि, यह बछड़ा एक हफ्ते के भीतर मर गया था।
पहली क्लोन भेड़ का नाम क्या है?
पहली क्लोन भेड़ का नाम डॉली है, जो 1996 में स्कॉटलैंड में पैदा हुई थी। डॉली को रोसलिन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा सफलतापूर्वक क्लोन किया गया था।
गरिमा किसका क्लोन है?
गरिमा दूसरी क्लोन भैंस का बछड़ा है, जिसका जन्म 6 जून 2009 को हुआ था। गरिमा का जन्म भी NDRI, करनाल द्वारा विकसित हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक से हुआ था और इसका वजन 43 किलोग्राम था।
हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक क्या है?
हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक एक संशोधित और सरल संस्करण है जो पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक की तुलना में अधिक सस्ती और आसान है। इसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
- Oocyte Maturation: सबसे पहले, अंडाशयों से Oocytes (अंडाणु कोशिकाओं) को एकत्रित किया जाता है और इन्हें लैब में परिपक्व किया जाता है।
- Enucleation: Oocytes का केन्द्रक (नाभिक) हटाया जाता है।
- Somatic Cell Integration: दाता भैंस के कान से ली गई सोमैटिक कोशिकाओं के नाभिक को Oocytes में प्रत्यारोपित किया जाता है।
- Electrofusion: विद्युत पल्स का उपयोग करके नाभिक को Oocytes के साथ मिलाया जाता है।
- Embryo Development: परिणामी भ्रूणों को लैब में परिपक्व किया जाता है और फिर ग्राही भैंसों में स्थानांतरित किया जाता है।
- Desired Sex: इस तकनीक से वांछित लिंग के बछड़ों का उत्पादन भी संभव है।
हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक की खोज किसने की?
हैंडगाइडेड क्लोनिंग तकनीक की खोज नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI), करनाल, हरियाणा के वैज्ञानिकों द्वारा की गई थी। इस तकनीक ने पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक की जटिलताओं को कम कर इसे अधिक सुलभ और किफायती बनाया है, जिससे डेयरी उद्योग में इसका व्यापक उपयोग संभव हो सका है।