"कांकरेज गाय की विशेषताएँ और लाभ: दुग्ध उत्पादन और कृषि कार्य में अनुकूल"
कांकरेज गाय (Kankrej Cow) : भारत की सबसे भारी व् मजबूत नस्ल
कांकरेज नस्ल भारत की देशी नस्लों में से एक प्रमुख और भारी गायों की नस्ल है। कांकरेज नस्ल एक द्विकाजी नस्ल (Dual Purpose Breed) है, जिसे मुख्यतः दुग्ध उत्पादन और कृषि कार्यों के लिए पाला जाता है। अपनी मजबूत शरीर संरचना और उत्कृष्ट खींचने की क्षमताओं के लिए जानी जाने वाली कांकरेज गायों को कृषि कार्य और दुग्ध उत्पादन दोनों के लिए अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इस ब्लॉग पोस्ट में कांकरेज गाय की नस्ल की उत्पत्ति, विशेषताएँ और लाभों के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी, जिससे पशुपालकों और उत्साही लोगों को व्यापक जानकारी मिल सके।
कांकरेज गाय का जन्म स्थान और वितरण
कांकरेज गायों (Kankrej Cow) की उत्पत्ति भारत के उत्तर गुजरात के कच्छ रण क्षेत्र से हुई है। इस नस्ल का नाम इसी क्षेत्र से लिया गया है, जो कच्छ के रेगिस्तान के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। कांकरेज गाय का वितरण क्षेत्र गुजरात और राजस्थान के जालौर , बाड़मेर , जोधपुर जिलों में माना जाता है।
कांकरेज गाय के उपनाम
कांकरेज गायों (Kankrej Cow) को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, जैसे बण्णाई, नगर, तालबदा, वाघियार, वगाड, वागेड, वधियार, वधियार, वधीर, वडियाल और सांचोरी , बाड़मेरी (राजस्थान)।
शारीरिक लक्षण (Physical Characteristics) :
- इनका रंग सिल्वर से लेकर ग्रे , लोहे के ग्रे या स्टील ब्लैक तक होता है। नवजात बछड़ों का सिर का रंग लाल होता है, जो आमतौर पर छह से नौ महीने में गायब हो जाता है।
- कांकरेज नस्ल के पशु शरीर में भारी भरकम होते है। कांकरेज गायों का माथा चौड़ा और नाक थोड़ी ऊपर उठी हुई होती है। उनका चेहरा छोटा होता है और उनके मजबूत लाइर के आकार के सींग एक उल्लेखनीय विशेषता हैं। कांकरेज भारत की सबसे भारी गाय की नस्ल है।
- उनके बड़े, लटकते और खुले कान विशेष रूप से पहचाने जाते हैं। उनके पैर आकार में सुडौल और संतुलित होते हैं, और उनके खुर छोटे, गोल और मजबूत होते हैं।
- नर बैलो में कूबड़ अच्छी तरह से विकसित होता है, जो अन्य नस्लों की तुलना में इतना कठोर नहीं होता। गला पतला लेकिन लटकता हुआ होता है, और नर गायों में लटकते हुए किल होता है।
- त्वचा का रंग गहरा होता है, थोड़ी ढीली और मध्यम मोटाई की होती है। बाल मुलायम और छोटे होते हैं, जो उनकी चिकनी उपस्थिति में योगदान करते हैं।
- सींग अन्य नस्लों की तुलना में अधिक ऊँचाई तक त्वचा से ढके होते हैं। सींग का आधार मोटा , भारी भरकम लम्बे व् सींग का अंतिम हिस्सा नुकीला होता है।
- कांकरेज गाय (Kankrej Cow) चलते समय अपने कदम 1.25 Spaces को लेते हुए गर्दन ऊपर उठाकर चलती है। इसीलिए इसे सवाईचाल कहते है।
स्वभाव और अनुकूलता :
दुग्ध उत्पादन :
- Milk Production : 1200 - 1300 Kg Per Lactation .
- Fat Production : 4.8 %
Kankrej Breed Of Cow (कांकरेज गाय)
विषय | विवरण |
---|---|
जन्म स्थान और वितरण | कांकरेज गायों की उत्पत्ति भारत के उत्तर गुजरात के कच्छ रण क्षेत्र से हुई है। यह नस्ल गुजरात और राजस्थान के जालौर, बाड़मेर, जोधपुर जिलों में पाई जाती है। |
उपनाम | कांकरेज गायों को बण्णाई, नगर, तालबदा, वाघियार, वगाड, वागेड, वधियार, वधीर, वडियाल और सांचोरी, बाड़मेरी (राजस्थान) के नाम से भी जाना जाता है। |
शारीरिक लक्षण | इनका रंग सिल्वर से लेकर ग्रे, लोहे के ग्रे या स्टील ब्लैक तक होता है। कांकरेज नस्ल के पशु शरीर में भारी भरकम होते हैं, उनका माथा चौड़ा और नाक थोड़ी ऊपर उठी होती है। उनके बड़े, लटकते और खुले कान, सुडौल पैर, और मजबूत खुर होते हैं। नर गायों में कूबड़ अच्छी तरह से विकसित होता है और उनका गला पतला लेकिन लटकता हुआ होता है। |
सींग | सींग का आधार मोटा, भारी भरकम और लंबा होता है, जो ऊँचाई तक त्वचा से ढके होते हैं और अंतिम हिस्सा नुकीला होता है। |
दूध उत्पादन | कांकरेज नस्ल की गाय प्रति ब्यात औसतन 1200 - 1300 किलोग्राम दूध का उत्पादन करती है। इनके दुग्ध में 4.8% फैट होती है। |
Rajasthan Express: Your Guide to Indian Livestock Breeds |
खींचने की क्षमताएँ :
मुख्य बिंदु (Key Point) :
- भारत की देशी नस्लों में सबसे भारी गाय की नस्ल 'कांकरेज' है।
- कांकरेज गाय में सवाईचाल देखने को मिलती है जो इसकी मुख्य पहचान है।
निष्कर्ष
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