थारपारकर गाय (Tharparkar cattle) की पहचान: जानिए थारपारकर गाय की विशेषताएं।

 थारपारकर गाय: राजस्थान की अमूल्य नस्ल 

परिचय (Introduction): 

थारपारकर नस्ल देशी गायों (Tharparkar cattles) की एक महत्वपूर्ण नस्ल है जो भारतीय पशुपालन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। थारपारकर गाय मुख्यता राजस्थान के पाकिस्तानी सीमावर्ती इलाकों में जैसे - जैसलमेर, जोधपुर, गंगानगर और बाड़मेर में पायी जाती है। थारपारकर नस्ल की गायें पशुपालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि उनका दूध प्रदर्शन उत्कृष्ट होता है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इसलिए, इन गायों का पालन और प्रजनन पशुपालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में वर्तमान में देशी गायों की कुल 53 पंजीकृत देशी नस्ल है। भारत की पहली सिंथेटिक गाय की नस्ल फ्रिस्वाल है। यह एक सिंथेटिक डेयरी पशु है जिसमें साहीवाल (37.5) और हॉलस्टीन फ्रीजियन (62.5) का लक्षण है।

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जन्म स्थान और नाम :

थारपारकर गाय (Tharparkar cattle) की नस्ल का जन्म स्थान थारपारकर जिला (थारपारकर पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त का एक जिला है।) और बाड़मेर के गुड्डामालानी में माना जाता है।थारपारकर गाय राजस्थान की गौवंश की महत्वपूर्ण और मूल्यवान नस्ल है, जो उत्कृष्ट उत्पादन और अद्वितीय शारीरिक लक्षणों के साथ अपनी विशेषता को बनाए रखती है।
  • थारपारकर नस्ल की गायों को थारी, मालानी, सफेद सिंधी, और ग्रे सिंधी भी कहा जाता है।

शारीरिक लक्षण (Physical Characteristics) :

  • इनकी खासियत है उनके सफेद या धुसर रंग की बड़ी नाक और उभरे हुए ललाट (forehead) का होना।
  • राजस्थान की सबसे ज्यादा दूध देने वाली देसी नस्ल थारपारकर गाय है।
  • थारपारकर नस्ल की गायों (Tharparkar Cows) में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इसका मतलब है कि ये गायें समय-समय पर पाये जाने वाले रोगों के खिलाफ अधिक प्रतिरोधी होती हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।
  • थारपारकर गायों की नस्लों में शरीर का रंग बदलने की क्षमता पाई जाती है।

उत्पादन (Productivity) :

  • थारपारकर गायों (Tharparkar cattles) में दूध का उत्पादन उत्कृष्ट होता है।
  • एक ब्यात में लगभग 2000-2500 लीटर दूध उत्पन्न होता है।
  • थारपारकर गाय 1 दिन में लगभग 12 - 15 लीटर दूध देती है। 

थारपारकर गाय की पहचान कैसे करे ? 

1. रंग और आकार: 
  • थारपारकर गाय (Tharparkar Cows) का शरीर सामान्यतः सफेद या धुसर रंग का होता है। इनका ललाट (forehead) उभरा होता है और उनकी नाक बड़ी होती है।
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2. स्थानीय विस्तार: 
  • इन गायों की मुख्यता राजस्थान के पाकिस्तानी सीमावर्ती इलाकों में होती है, जैसे कि जैसलमेर, जोधपुर, गंगानगर और बाड़मेर।
3. रोग प्रतिरोधक क्षमता के आधार पर : 
  • थारपारकर गाय की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, जो उन्हें विभिन्न रोगों से बचाती है।
4. उत्पादन दृष्टि से : 
  • इन गायों का दूध उत्कृष्ट गुणवत्ता का होता है, और एक ब्यात में लगभग 2000-2500 लीटर दूध उत्पन्न होता है।

भारत में पशुधन की आबादी 20वीं पशुधन गणना के अनुसार : 

1. कुल पशुधन आबादी:
  • 2019 में देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है, जो 2012 की गणना की तुलना में 4.6% अधिक है।
2. कुल गायों की संख्या:
  • 2019 में कुल गायों की संख्या 192.49 मिलियन है, जो पिछली गणना की तुलना में 0.8% ज्यादा है। देशी गायो में सबसे लम्बा दुग्धकाल " गिर गाय (Gir Cattle) " का होता है। 
Discover the resilient Tharparkar Cattle breed: Uncover its unique traits and characteristics, vital for sustainable Indian agriculture.

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थारपारकर गाय की उत्पति कहाँ से हुई है ?
थारपारकर गाय की उत्पति थारपारकर जिला (पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त का एक जिला) और भारत के बाड़मेर के गुड्डामालानी में मानी जाती है।
थारपारकर गाय राजस्थान के किन जिलों में पायी जाती है ?
थारपारकर गाय राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, गंगानगर और जोधपुर जिलों में पाई जाती है।
थारपारकर गाय प्रतिदिन कितना दूध देती है ?
थारपारकर गाय प्रतिदिन लगभग 12 से 15 लीटर दूध देती है।
थारपारकर गाय को अन्य किन नामों से जाना जाता है ?
थारपारकर गाय को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि थारी, मालानी, सफेद सिंधी, और ग्रे सिंधी आदि।