कृत्रिम गर्भाधान क्या है?

कृत्रिम गर्भाधान (AI) एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में, उच्च प्रजनन क्षमता वाले नर पशु से एकत्रित किए गए सीमन (वीर्य) को कृत्रिम तरीके से मादा पशु के प्रजनन अंगों में तब डाला जाता है, जब वह हीट (गर्भधारण के लिए उपयुक्त समय) में हो। यही प्रक्रिया कृत्रिम गर्भाधान कहलाती है।

कृत्रिम गर्भाधान (AI) का उपयोग न केवल नस्ल सुधार के लिए, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले नर सांड के गुणों का लाभ उठाकर दुग्ध और मांस उत्पादन को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। वर्तमान समय में पशुओं में प्राकृतिक प्रजनन की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग अधिक हो रहा है, क्योंकि प्राकृतिक प्रजनन में जन्मजात और यौन रोग, जैसे ब्रूसीलोसिस और ट्रिकोमोनिएसिस, का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से इन रोगों के फैलने की संभावना लगभग शून्य हो जाती है।

Artificial Insemination (AI)

TopicArtificial Insemination In Animals
DefinitionArtificial insemination (AI) is a technique used to improve livestock breeds, where semen collected from a high-fertility male is artificially deposited into the reproductive tract of a female at the optimal time during her heat cycle.
History
  • First AI in the World: Conducted in 1780 by Lazzaro Spallanzani on a dog in Italy.
  • First AI in India: Performed by Dr. Sampat Kumaran in Karnataka in 1939 using Holstein Friesian semen.
  • First AI in Buffaloes: Carried out in 1943 by the Allahabad Agricultural Institute.
  • First AI in Humans: Conducted in 1770 by John Hunter, a Scottish surgeon.
Benefits
  • Utilization of high-fertility males.
  • Improvement in breed quality and production capacity.
  • Prevention of reproductive and venereal diseases.
  • Better breeding records and management.
  • Use of semen from deceased or disabled males.
  • Facilitates the breeding of animals of different sizes.
  • Increased production of milk and meat.
  • Time savings in progeny testing.
  • Lower risk of injury to animals during breeding.
Drawbacks
  • Requires specialized training and equipment.
  • Risk of infection if not properly handled.
  • Success depends on accurate timing of insemination.
Procedure
  1. Selection of a suitable bull for semen collection.
  2. Collection of semen using an artificial vagina or electroejaculation.
  3. Thawing, evaluation, and processing of collected semen.
  4. Insemination of the female at the optimal time, using appropriate methods for different species.
Common Methods
  • Cows and Buffaloes: Recto-Vaginal method
  • Mares: Vaginal method
  • Sheep and Goats: Vaginal Speculum method
  • Sows: Cork Screw Pipette method
  • Bitches: Vaginal and Trans-Cervical Insemination
The Rajasthan Express: Your Guide to Animal Health

विश्व में पहली बार AI: 

  • दुनिया में पहली बार पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान (AI) इटली में किया गया था। 1780 में, इटली के लाज्ज़ारो स्पैलान्ज़ानी (Lazzaro Spallanzani) ने सबसे पहले एक कुतिया पर कृत्रिम गर्भाधान किया। इस क्रत्रिम गर्भादान  के परिणामस्वरूप उस कुतिया ने तीन पिल्लों को जन्म दिया।

भारत में पहली बार AI: 

  • भारत में पहला कृत्रिम गर्भाधान 1939 में डॉ. संपत कुमारन द्वारा पैलेस डेयरी फार्म, मैसूर, कर्नाटक में किया गया था, जिसमें हेलिकर गाय में होल्स्टीन फ्राइज़ियन (HF) नर सांड का सीमेन उपयोग किया गया था। 

भैंस में पहली बार AI: 

  • भैंस में पहली बार कृत्रिम गर्भाधान 1943 में इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया। 

मानव में पहली बार AI: 

  • मानव प्रजाति में पहला कृत्रिम गर्भाधान 1770 में स्कॉटिश सर्जन जॉन हंटर द्वारा किया गया था, और 1790 में उन्होंने इस तकनीक के बारे में दुनिया को जानकारी दी।

कृत्रिम गर्भाधान (AI) एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में, उच्च प्रजनन क्षमता वाले नर पशु से एकत्रित किए गए सीमन (वीर्य) को कृत्रिम तरीके से मादा पशु के प्रजनन अंगों में तब डाला जाता है, जब वह हीट (गर्भधारण के लिए उपयुक्त समय) में हो।

कृत्रिम गर्भाधान (AI) एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में, उच्च प्रजनन क्षमता वाले नर पशु से एकत्रित किए गए सीमन (वीर्य) को कृत्रिम तरीके से मादा पशु के प्रजनन अंगों में तब डाला जाता है, जब वह हीट (गर्भधारण के लिए उपयुक्त समय) में हो। यही प्रक्रिया कृत्रिम गर्भाधान कहलाती है।
Learn about artificial insemination in animals, including various techniques, benefits, and the history behind AI. The Role of AI In Aniimal Breeding.

उच्च प्रजनन क्षमता वाले नरों का उपयोग:

  • कृत्रिम गर्भाधान (AI) के माध्यम से उच्च प्रजनन क्षमता वाले नरों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में मुर्रा नस्ल के एक बेहतरीन नर बैल को अमेरिका की भैंसों के साथ प्राकृतिक प्रजनन कराना संभव नहीं है, लेकिन इस बैल का सीमेन एकत्र कर कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उन भैंसों को गर्भित किया जा सकता है।

नस्ल सुधार: 

  • AI तकनीक से जानवरों की नस्ल में सुधार किया जा सकता है। इससे उच्च गुणवत्ता वाली नस्लें उत्पन्न होती हैं, जो उत्पादन क्षमता और स्वास्थ्य में बेहतर होती हैं।

उत्पादन में वृद्धि: 

  • उच्च गुणवत्ता वाले नर के गुणों को कृत्रिम गर्भाधान द्वारा फैलाकर दुग्ध और मांस उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, जिससे किसानों को अधिक लाभ होता है।

यौन रोगों की रोकथाम: 

  • प्राकृतिक प्रजनन से फैलने वाले यौन रोग, जैसे ब्रुसेलोसिस और कैम्पिलोबैक्टीरियोसिस, को कृत्रिम गर्भाधान से रोका जा सकता है। सीमन में एंटीबायोटिक्स मिलाकर इन रोगों को फैलने से रोका जाता है, जिससे बछड़ों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है।

सीमेन संग्रहण और वितरण:

  • सीमेन को संग्रहित करके सीमेन स्ट्रॉ के रूप में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भेजा जा सकता है, जिससे जानवरों का गर्भाधान प्रजनन समस्याओं से मुक्त होकर आसानी से किया जा सकता है।

बेहतर प्रजनन रिकॉर्ड: 

  • कृत्रिम गर्भाधान से प्रजनन रिकॉर्ड रखना आसान हो जाता है, जिससे प्रजनन दर और बछड़ों के जन्म की निगरानी में मदद मिलती है। 

विकलांग नर का उपयोग: 

  • क्रत्रिम गर्भादान द्वारा अच्छे गुणवत्ता वाले विकलांग नरों का भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे उनकी योग्यता का लाभ उठाया जा सकता है।

विभिन्न आकार के पशुओं का प्रजनन: 

  • कृत्रिम गर्भाधान से अलग-अलग आकार के पशुओं का भी सफलतापूर्वक प्रजनन करवाया जा सकता है।

झुंड में सुधार: 

  • AI के माध्यम से झुंड के संपूर्ण गुणों को सुधारकर उसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

मृत पशुओं के वीर्य का उपयोग: 

  • सांड के सीमेन को उसकी मृत्यु के बाद भी कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उपयोग किया जा सकता है, जिससे उसकी उच्च प्रजनन क्षमता का लाभ जारी रह सकता है।

संतति परीक्षण में समय की बचत: 

  • कृत्रिम गर्भाधान द्वारा संतति परीक्षण कम समय में किया जा सकता है, जिससे पशु सुधार कार्यक्रमों को तेजी से लागू किया जा सकता है।

चोट का कम खतरा: 

  • AI (कृत्रिम गर्भाधान) से गर्भित होने वाली गायों और भैंसों में प्राकृतिक प्रजनन की तुलना में चोट का जोखिम कम होता है।

प्रशिक्षण की आवश्यकता: 

  • AI (कृत्रिम गर्भाधान) को सफलतापूर्वक करने के लिए प्रशिक्षित पशु चिकित्सक या पशु निरीक्षक और विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।

संक्रमण का खतरा: 

  • यदि जिस बैल से वीर्य (सीमेन) लिया गया है, वह ब्रुसलोसिस (Brucellosis) से संक्रमित है और वीर्य की सही जांच नहीं की गई है, तो इस तकनीक से गर्भित होने वाली सभी गाय और भैंसे भी ब्रुसलोसिस से संक्रमित हो सकती हैं।

सही हीट का समय: 

  • साथ ही, यदि मादा पशु में सही हीट के समय सही जगह पर वीर्य नहीं छोड़ा गया, तो गर्भाधान की सफलता दर में कमी आ जाती है।

विभिन्न जानवरों में कृत्रिम गर्भाधान करने के लिए निम्नलिखित विधियाँ काम में ली जाती है। 

  • गाय और भैंस में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : रेक्टो-वेजाइनल (Recto-Vaginal) विधि
  • घोड़ी में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : वेजाइनल (Vaginal) विधि
  • भेड़ और बकरी में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : वेजाइनल स्पेकुलम (Vaginal Speculum) विधि
  • सुअरी में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : कॉर्क स्क्रू पिपेट (Cork Screw Pipette) विधि
  • कुतिया में कृत्रिम गर्भाधान की विधि : वेजाइनल इंसेमिनेशन (Vaginal Insemination), ट्रांस-सर्विकल इंसेमिनेशन (Trans-cervical Insemination), और सर्जिकल इंसेमिनेशन (Surgical Insemination)

सुअरी में कृत्रिम गर्भाधान के लिए कॉर्क स्क्रू पिपेट विधि का उपयोग किया जाता है, क्योंकि सुअरी के सर्विक्स की आकृति कॉर्क स्क्रू पिपेट जैसी होती है। जिसके कारण सामन्य कृत्रिम गर्भाधान की विधि से गर्भदान करना सम्भव नहीं है।

Thawing की प्रक्रिया AI गन को तैयार करने से पहले की जाती है। हिमशीतित वीर्य (फ्रोजन सीमेन), जिसका तापमान -196°C होता है, को तरल बनाने और पुनः क्रियाशील करने के लिए उसके तापमान को -196°C से +37°C तक लाया जाता है। इसे हासिल करने के लिए 37°C युक्त पानी की बाल्टी में सीमेन स्ट्रॉ को 30 सेकंड तक सीधा रखा जाता है, जिससे सीमेन का तापमान तुरंत -196°C से +37°C तक पहुँच जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को Thawing या विगलन कहा जाता है।

  • Thawing समय और तापमान :  37°C तापमान / 30 सेकंड
  • सीमेन स्ट्रॉ को जार से बाहर निकालने के बाद, उसे हवा में दो से तीन बार हल्के से हिलाना या झटकना चाहिए, ताकि उसके फैक्ट्री सिरे पर जमा हुई लिक्विड नाइट्रोजन (LN2) पूरी तरह बाहर निकल जाए।

1. सीमेन स्ट्रॉ की सफाई:

  • थॉइंग की हुई सीमेन स्ट्रॉ को कपड़े से अच्छी तरह से साफ किया जाता है, ताकि स्ट्रॉ पर लगा हुआ पानी पूरी तरह से हट जाए।

2. AI गन में सीमेन स्ट्रॉ लोडिंग:

  • सीमेन स्ट्रॉ को AI गन में लोड करते समय, फैक्ट्री सील को AI गन के अंदर डाला जाता है, जबकि लेबोरेटरी सील गन के बाहर से दिखाई देती है। इसे स्ट्रॉ कटर से 90 डिग्री के कोण पर काटा जाता है, ताकि सीमेन सही तरीके से डिपॉजिट हो सके।

3. शीथ को AI गन पर पहनाना:

  • AI गन में सीमेन स्ट्रॉ डालने के बाद, शीथ के चीरा लगे सिरे को गन पर सावधानी से चढ़ाया जाता है। ध्यान रहे कि शीथ के बाहरी भाग को हाथ न लगाया जाए, क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।

4. AI गन का पिस्टन लॉक और तैयारी:

  • शीथ को AI गन के निचले सिरे पर लगे पिस्टन में लॉक कर दिया जाता है, जिससे गन कृत्रिम गर्भाधान के लिए तैयार हो जाती है।

5. AI गन का तुरंत उपयोग:

  • AI गन को तैयार करने के बाद, 5 से 10 मिनट के भीतर ही कृत्रिम गर्भाधान कर देना चाहिए। ज्यादा समय गुजरने पर सीमेन की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।

गाय – भैंस में कृत्रिम गर्भाधान करने के लिए “रेक्टो-वेजाइनल विधि” का उपयोग की जाती है। गाय – भैंस में कृत्रिम गर्भाधान की सबसे सरल और प्रभावी विधि “रेक्टो-वेजाइनल विधि” है। गाय – भैंस में कृत्रिम गर्भाधान को निम्नलिखित चरणों में किया जाता है। 

1. पशु को नियंत्रित करना:

  • सबसे पहले, गाय या भैंस को काबू करने के लिए ट्राविस (विशेष नियंत्रण उपकरण) में डाला जाता है। यदि ट्राविस उपलब्ध नहीं है, तो पशु को किसी पेड़ या मजबूत स्थान पर बांध दिया जाता है, ताकि वह भाग न सके और सुरक्षित रहे।

2. स्लीव और स्नेहक का उपयोग:

  • कृत्रिम गर्भाधान करने वाला पशु चिकित्सक अपने हाथों में स्लीव पहनता है और उस पर स्नेहक के रूप में लिक्विड पैराफिन या सरसों के तेल का उपयोग करता है।

3. रेक्टम में हाथ डालना:

  • इसके बाद, चिकित्सक बाएं हाथ की उंगलियों और अंगूठे की मदद से कोन (शंकु) बनाते हुए धीरे-धीरे हाथ को रेक्टम (मलाशय) में डालता है। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि प्रजनन अंग थोड़े दाईं ओर होते हैं और बाएं हाथ से उन्हें आसानी से महसूस और पकड़ा जा सकता है।

4. मलाशय की सफाई और सर्विक्स को पकड़ना:

  • रेक्टम में हाथ डालने के बाद, वहां मौजूद मल/गोबर को निकाल दिया जाता है। इसके बाद चिकित्सक पशु के गर्भाशय के सर्विक्स (गर्भमुख) को महसूस करके पकड़ता है।

5. AI गन का प्रवेश:

  • सर्विक्स पकड़ने के बाद, दाहिने हाथ से AI गन (जो पहले से वीर्य से भरी होती है) को बिना कहीं स्पर्श किए, लगभग 45 डिग्री के कोण से, पशु के योनि के माध्यम से धीरे-धीरे प्रवेश कराया जाता है।

6. मिड-सर्विक्स में सीमेन जमा करना:

  • AI गन के प्रवेश के बाद, उसमें मौजूद वीर्य को मिड-सर्विक्स (गर्भाशय के मध्य भाग) में जमा किया जाता है। मिड-सर्विक्स में वीर्य रखने से शुक्राणुओं की सक्रियता बढ़ जाती है और अंडाणु तक तेजी से पहुंचते हैं, जिससे निषेचन की संभावना बढ़ जाती है।

7. AI गन निकालना और सफाई:

  • सीमेन को मिड-सर्विक्स में डिपॉजिट करने के बाद, रेक्टम में रखा हुआ हाथ और AI गन को धीरे-धीरे बाहर निकाला जाता है। इसके बाद, AI गन को ध्यानपूर्वक जांचा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसमें रक्त या मवाद जैसी कोई द्रव न लगी हो।

8. स्लीव और शीथ का निपटान:

  • AI गन को बाहर निकालने के बाद, उपयोग की गई स्लीव और शीथ को नष्ट कर दिया जाता है ताकि उन्हें दुबारा इस्तेमाल न किया जा सके।

9. पशु की हीट चक्र की निगरानी:

  • कृत्रिम गर्भाधान के बाद, पशु पर अगले हीट (ऊष्मा) चक्र तक ध्यान देना आवश्यक है। यदि गाय या भैंस कृत्रिम गर्भाधान के बाद फिर से हीट में आती है, तो इसका मतलब है कि वह गर्भित नहीं हुई। यदि वह हीट में नहीं आती, तो समझा जाता है कि वह गर्भित हो चुकी है।

भेड़ और बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान के लिए वैजिनल स्पेकुलम विधि का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में, पशु निरीक्षक स्नेहक लगे हुए स्पेकुलम को योनि में डालता है और गर्भाशय की ग्रीवा (सर्विक्स) के मध्य भाग को पकड़ता है। इसके बाद, मिड-सर्विक्स में सीमेन को डिपॉजिट किया जाता है।

घोड़ी में कृत्रिम गर्भाधान (AI) के लिए प्रमुख रूप से वेजाइनल (Vaginal) विधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि में सबसे पहले घोड़ी को ठीक से काबू में किया जाता है ताकि AI करने वाले पशु निरक्षक को कोई हानि न हो। नियंत्रण के बाद, घोड़ी के योनि के पास स्थित वल्वर होठों को अच्छे से साफ किया जाता है। इसके बाद, गर्भाधान करने वाला पशु निरक्षक अपने दाहिने हाथ को पानी और साबुन से धोता है और फिर खारे पानी के घोल से कुल्ला करता है।

गर्भाधान कैथेटर को हाथ में लेकर और सभी उंगलियों को एक साथ रखकर उसे घोड़ी की योनि में प्रवेश कराया जाता है। गर्भाशय ग्रीवा के बाहरी छिद्र (ओरिफिसियम एक्सटर्ना) का पता लगाने के बाद, बाएं हाथ की मदद से योनि के बाहर से कैथेटर को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जाता है ताकि कैथेटर की नोक गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से गर्भाशय में पहुंच सके।

सुअरी में कृत्रिम गर्भाधान (AI) के लिए प्रमुख रूप से कॉर्क स्क्रू पिपेट (Cork Screw Pipette) विधि का उपयोग किया जाता है। सुअरी में कृत्रिम गर्भाधान के लिए कॉर्क स्क्रू पिपेट विधि का उपयोग किया जाता है, क्योंकि सुअरी के सर्विक्स की आकृति कॉर्क स्क्रू पिपेट जैसी होती है। जिसके कारण सामन्य कृत्रिम गर्भाधान की विधि से गर्भदान करना सम्भव नहीं है।

कुत्तिया और बिल्ली  में कृत्रिम गर्भाधान (AI) के लिए प्रमुख रूप से वेजाइनल इंसेमिनेशन (Vaginal Insemination), ट्रांस-सर्विकल इंसेमिनेशन (Trans-cervical Insemination), और सर्जिकल इंसेमिनेशन (Surgical Insemination) विधि का उपयोग किया जाता है।

Learn about artificial insemination in animals, including various techniques, benefits, and the history behind AI. The Role of AI In Aniimal Breeding.

THE RAJASTHAN EXPRESS

People Also Ask?

कृत्रिम गर्भाधान (AI) क्या है?
कृत्रिम गर्भाधान (AI) एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए किया जाता है। इसमें उच्च प्रजनन क्षमता वाले नर पशु से एकत्रित किए गए सीमन (वीर्य) को कृत्रिम तरीके से मादा पशु के प्रजनन अंगों में तब डाला जाता है, जब वह हीट (गर्भधारण के लिए उपयुक्त समय) में हो।
कृत्रिम गर्भाधान के क्या फायदे हैं?
  • उच्च प्रजनन क्षमता वाले नरों का उपयोग
  • नस्ल सुधार
  • उत्पादन में वृद्धि
  • यौन रोगों की रोकथाम
  • सीमेन संग्रहण और वितरण
  • बेहतर प्रजनन रिकॉर्ड
कृत्रिम गर्भाधान के नुकसान क्या हैं?
  • प्रशिक्षण की आवश्यकता
  • संक्रमण का खतरा
  • सही हीट का समय
पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधियाँ क्या हैं?
  • गाय और भैंस: रेक्टो-वेजाइनल विधि
  • घोड़ी: वेजाइनल विधि
  • भेड़ और बकरी: वेजाइनल स्पेकुलम विधि
  • सुअरी: कॉर्क स्क्रू पिपेट विधि
  • कुतिया: वेजाइनल इंसेमिनेशन, ट्रांस-सर्विकल इंसेमिनेशन, और सर्जिकल इंसेमिनेशन
थॉइंग (Vigilation) की प्रक्रिया क्या है?
थॉइंग की प्रक्रिया में हिमशीतित वीर्य को -196°C से +37°C तक लाया जाता है। इसे 37°C के पानी की बाल्टी में 30 सेकंड तक रखा जाता है, जिससे सीमेन का तापमान तुरंत बढ़ जाता है।
कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया में क्या कदम उठाए जाते हैं?
  • पशु को नियंत्रित करना
  • स्लीव और स्नेहक का उपयोग
  • रेक्टम में हाथ डालना
  • मलाशय की सफाई और सर्विक्स को पकड़ना
कृत्रिम गर्भाधान में सफलता दर को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
सही हीट के समय सही स्थान पर वीर्य डालने से सफलता दर को बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा, प्रशिक्षित पशु चिकित्सक की मदद से प्रक्रिया को ठीक से किया जाना चाहिए।
घोड़ी को कृत्रिम गर्भाधान कैसे कराएं?
  1. तय समय: पहले, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घोड़ी हीट में है।
  2. सही उपकरण: कृत्रिम गर्भाधान के लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  3. सीमन की तैयारी: थॉइंग प्रक्रिया के माध्यम से हिमशीतित सीमेन को गर्म करें।
  4. वेजाइनल विधि: घोड़ी के प्रजनन अंगों तक पहुँचने के लिए वेटिंग पोजीशन में रखें।
  5. प्रवेश परीक्षण: सुनिश्चित करें कि सीमन सही स्थान पर पहुँचा है।
घोड़ी का गर्भाधान कब करें?
घोड़ी का गर्भाधान उस समय करना चाहिए जब वह हीट (गर्भधारण के लिए उपयुक्त समय) में हो। आमतौर पर, घोड़ी में हीट हर 21 दिन में एक बार होती है, और सही समय का निर्धारण करना महत्वपूर्ण है। गर्भाधान के लिए सर्वोत्तम समय प्रजनन चक्र की शुरुआत के 12 से 24 घंटे बाद होता है।
मवेशियों में कृत्रिम गर्भाधान का पहली बार प्रयोग कब किया गया?
मवेशियों में कृत्रिम गर्भाधान का पहला प्रयोग 1930 के दशक में किया गया था। इस समय, वैज्ञानिकों ने यह पाया कि उच्च गुणवत्ता वाले नरों के सीमेन का उपयोग करके मवेशियों की नस्ल में सुधार किया जा सकता है।
कृत्रिम रूप से गर्भाधान किया गया पहला पशु कौन सा था?
कृत्रिम रूप से गर्भाधान किया गया पहला पशु एक गाय थी। यह घटना 1780 में हुई थी, जब एक इटालियन वैज्ञानिक, लुइगी गैलवानी, ने पहली बार एक गाय को कृत्रिम गर्भाधान किया।